
अरशद मलिक आज का रिपोर्टर
मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सहिम के माता-पिता का सपना है कि उनका बेटा शिक्षा और खेल दोनों में उत्कृष्टता प्राप्त करे। सहिम ने बहुत ही कम उम्र में क्रिकेट का बल्ला थाम लिया था। गांव की कच्ची गलियों में खेलते हुए उसने क्रिकेट से नाता जोड़ लिया और धीरे-धीरे उसका यह शौक जुनून में बदल गया।

गांव से निकलकर देहरादून तक का सफर
अब यह नन्हा खिलाड़ी देहरादून की प्रतिष्ठित ‘जय प्रकाश क्रिकेट एकेडमी’ में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है — एक ऐसी संस्था जो वर्षों से उत्तर भारत के खिलाड़ियों को संवारने में अहम भूमिका निभा रही है। यहां से निकलकर कई क्रिकेटर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुके हैं।

कोच का कहना है कि सहिम की नज़र की तीव्रता, गेंद पर नियंत्रण, और तुरंत प्रतिक्रिया उसकी उम्र के बच्चों से कहीं आगे है। कोचिंग स्टाफ उसे मेहनती, अनुशासित और बेहद केंद्रित खिलाड़ी मानते हैं। उनकी राय में यदि सहिम को लगातार प्रशिक्षण और सही मार्गदर्शन मिलता रहा, तो आने वाले वर्षों में उसका नाम देश के टॉप खिलाड़ियों में शुमार हो सकता है।

खेल से बढ़कर सोच है सहिम की
सहिम का सपना सिर्फ क्रिकेटर बनना नहीं है। वह चाहता है कि उसके खेल के ज़रिए उसके अम्मी-अब्बू, उसका गांव कमालपुर, और पूरा भारत गर्व महसूस करे। इस उम्र में उसकी सोच केवल खेल की सीमाओं तक नहीं है, बल्कि वह अपनी जिम्मेदारियों को भी समझता है।
मोबाइल और स्क्रीन की दुनिया में खोए बच्चों के बीच सहिम जैसे होनहार युवा एक सच्ची प्रेरणा बनते हैं। वह यह सिखाते हैं कि छोटे गांव से निकलकर भी बड़े सपने देखे जा सकते हैं और उन्हें हासिल भी किया जा सकता है — बशर्ते जुनून और मेहनत सच्चे हों।
पारिवारिक समर्थन बना ताकत
सहिम के परिवार ने उसकी प्रतिभा को शुरुआत से ही पहचाना और उसे आगे बढ़ाने के लिए पूरा समर्थन दिया। उसके माता-पिता चाहते हैं कि वह पढ़ाई और खेल दोनों में उत्कृष्टता हासिल करे। आज उनके सपने आकार ले रहे हैं और सहिम हर दिन अपने लक्ष्य की ओर एक कदम बढ़ा रहा है।
गांव को है अपने लाल पर गर्व
कमालपुर गांव के लोग भी सहिम को लेकर बेहद उत्साहित हैं। गांव के बुजुर्ग, युवा और शिक्षक सभी उसकी सफलता की कामना कर रहे हैं। सहिम आज गांव के बच्चों के लिए एक रोल मॉडल बन गया है। उसके संघर्ष और प्रयासों ने यह दिखा दिया है कि संसाधन भले सीमित हों, लेकिन संकल्प अगर बड़ा हो तो मंज़िल दूर नहीं।
सहिम के बड़े भाई और वरिष्ठ पत्रकार अरशद मलिक का कहना है —
“सहिम बचपन से ही क्रिकेट को लेकर जुनूनी रहा है। उसकी लगन और मेहनत देखकर मुझे पूरा यक़ीन है कि एक दिन वह भारत की जर्सी पहनकर देश का प्रतिनिधित्व करेगा। वह सिर्फ मेरा भाई नहीं, बल्कि कमालपुर का सपना और पूरे भारत की उम्मीद है।”
निष्कर्ष:
सहिम मलिक जैसे बच्चे भारत के खेल भविष्य की असली पूंजी हैं। जरूरत है कि उन्हें सही दिशा, संसाधन और प्रेरणा दी जाए। कमालपुर का यह चमकता सितारा एक दिन जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मैदान में भारत का तिरंगा गर्व से लहराएगा — तो यह पूरे देश की जीत होगी।