
पत्रकार अरशद मलिक के कलम से
स्थान: उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र से विशेष रिपोर्ट
अरशद मलिक
आज का रिपोर्ट
ब्यूरो रिपोर्ट : गांव की राजनीति में ग्राम प्रधानों की भूमिका बेहद अहम होती है। गांव के विकास की सारी योजनाओं का क्रियान्वयन इन्हीं के जरिए होता है, लेकिन अफसोस की बात है कि कई ग्राम प्रधान अपने लाभ के लिए भोली भाली जनता को पागल बनाकर सरकारी योजनाओं का कोटा भरने में जुटे हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे जनता की आंखों में धूल झोंककर सरकारी लाभों का गबन किया जा रहा है।
योजनाओं का नाम, लेकिन लाभ ‘अपनों’ को
सरकार द्वारा गांवों के विकास के लिए आवास योजना, शौचालय योजना, मनरेगा, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, उज्ज्वला योजना जैसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कागजों पर दिखता है कि गांव में 100% पात्र लाभार्थियों को योजनाओं का लाभ मिल चुका है, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि अधिकांश गरीबों के नाम तक सूची में नहीं हैं। 

फर्जीवाड़ा ऐसे चलता है खेल
ग्राम प्रधान अपने नजदीकी रिश्तेदारों, समर्थकों या रिश्वत देने वालों के नाम योजनाओं में जोड़ देते हैं, चाहे वो पात्र हों या नहीं। पात्र लोगों से कहा जाता है कि “फॉर्म भर दिया गया है”, लेकिन असल में उनका नाम शामिल ही नहीं होता। फिर उनकी जानकारी के बिना ही लाभार्थी के रूप में दूसरे लोगों के नाम आगे बढ़ा दिए जाते हैं।
मनरेगा में फर्जी उपस्थिति
मनरेगा जैसी योजनाओं में मजदूरों की उपस्थिति फर्जी तरीके से दर्ज की जाती है। गरीब मजदूर को पता ही नहीं चलता कि उसकी मजदूरी निकल भी चुकी है, और प्रधान या सचिव उसका पैसा खुद हड़प लेते हैं। हस्ताक्षर की जगह अंगूठा लगवाकर बाद में रिकॉर्ड में छेड़छाड़ की जाती है।
आवास योजना में खेल

आवास योजना में खेल
प्रधान अक्सर गरीबों को कहते हैं कि “आवेदन सरकार तक भेजा गया है, इंतजार करो।” जबकि पीछे से उन्हीं योजनाओं में अपात्र या अमीर परिवारों को जोड़कर लाभ दे दिया जाता है। कभी-कभी गरीबों से पैसा भी वसूला जाता है, ये कहकर कि “पैसे दोगे तो नाम आएगा।”
जनता का भरोसा तोड़ते
‘सेवक’ग्राम प्रधान बनने से पहले ये लोग खुद को जनता का सेवक बताते हैं, लेकिन कुर्सी मिलते ही कई प्रधान खुद को राजा समझने लगते हैं। गांव के गरीब, बुजुर्ग, विधवा महिलाएं महीनों प्रधान के दरवाजे चक्कर लगाते रहते हैं – न सुनवाई होती है, न जवाब।

प्रशासन की निष्क्रियता भी जिम्मेदार सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि शिकायत करने पर भी तहसील स्तर से लेकर जिले तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। या तो जांच लंबी चलती है या फिर प्रधान अधिकारियों से सांठगांठ कर मामला दबा देते हैं।
जरूरत है जागरूकता और जवाबदेही की
गांव की जनता को अब पागल नहीं बनना है। उन्हें अपने हक की जानकारी होनी चाहिए और सवाल पूछने की आदत डालनी चाहिए। साथ ही सरकार को भी डिजिटल ट्रैकिंग और पारदर्शी व्यवस्था को और मजबूत करना चाहिए ताकि पंचायत स्तर पर होने वाला यह सूक्ष्म भ्रष्टाचार रोका जा सके।
(नोट: यह रिपोर्ट एक ग्रामीण क्षेत्र के अनुभवों और स्रोतों के आधार पर बनाई गई है। सभी प्रधान ऐसे नहीं होते, लेकिन बहुतायत में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति चिंताजनक है।)